आजकल बच्चे छोटी उम्र से ही मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप पर टाइप करना सीख जाते हैं। स्कूलों में भी डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि तकनीक का इस्तेमाल ज़रूरी है, लेकिन यह सवाल भी उतना ही अहम है — क्या बच्चों को कागज़, कलम और पेंसिल से दूर करना सही है?
वैज्ञानिक शोध और शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि पारंपरिक लेखन यानी हाथ से लिखने की आदत बच्चों के मानसिक विकास, रचनात्मकता और गणितीय समझ के लिए बेहद ज़रूरी है। नॉर्वे के ट्रॉम्सो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ऑड्रे वान डेर मीर द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जब बच्चे हाथ से लिखते हैं, तो उनका मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है। हाथ से लिखने के दौरान सोचने, योजना बनाने, याद रखने और शब्दों को आकार देने जैसी कई गतिविधियाँ एक साथ होती हैं। वहीं टाइपिंग करते समय यह प्रक्रिया सीमित हो जाती है क्योंकि उसमें सिर्फ उंगलियों का दोहराव होता है।
अमेरिका में हुए एक प्रसिद्ध अध्ययन में पाया गया कि जो छात्र लेक्चर के नोट्स हाथ से लिखते थे, वे टाइप करने वाले छात्रों की तुलना में बेहतर ढंग से अवधारणाएँ समझते थे और उन्हें लंबे समय तक याद भी रख पाते थे। हाथ से लिखने की प्रक्रिया धीमी होती है, लेकिन यही धीमापन बच्चे को सोचने का समय देता है। जब बच्चा शब्दों को अपने दिमाग़ से निकालकर धीरे-धीरे पन्ने पर उतारता है, तब उसमें कल्पना और अभिव्यक्ति की शक्ति तेज़ी से विकसित होती है।
गणित के क्षेत्र में भी यह बात सिद्ध हो चुकी है कि हाथ से अभ्यास करने वाले बच्चों की गणना क्षमता और समझ कहीं बेहतर होती है। जापान में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे नियमित रूप से पेंसिल और कॉपी का इस्तेमाल करते हैं, उनकी गणितीय सटीकता और गति अधिक होती है। पेंसिल से हल करना, मिटाना, और बार-बार कोशिश करना — यह प्रक्रिया सोच को गहरा बनाती है।
हमारे देश में भी कई महान गणितज्ञ — जैसे श्रीनिवास रामानुजन — ने अपने शुरुआती वर्षों में हाथ से ही अभ्यास किया। वे बार-बार पन्नों पर जटिल गणनाएँ लिखते और उन्हें समझते थे। यही अभ्यास आगे चलकर उनकी प्रतिभा का आधार बना।
इसके अलावा, जब बच्चा कागज़ पर लिखता है, तो उसका ध्यान ज़्यादा केंद्रित रहता है। स्क्रीन पर काम करते समय गेम, विडियो या अन्य चीज़ों से ध्यान जल्दी भटकता है, जबकि कागज़-कलम का संसार शांति और एकाग्रता को बढ़ावा देता है।
इसलिए, यह समय है कि हम दोबारा सोचें कि हम अपने बच्चों को क्या सिखा रहे हैं। तकनीक ज़रूरी है, लेकिन शुरुआत उस साधन से होनी चाहिए जो बच्चे की सोच, कल्पना और समझ को मजबूत बनाता है। हाथ से लिखना कोई पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि यह एक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध अभ्यास है, जो बच्चों को बेहतर नागरिक, वैज्ञानिक और कलाकार बना सकता है।
आइए, आज से ही हम अपने आसपास के माता-पिता, शिक्षकों और अभिभावकों को इस दिशा में जागरूक करने की कोशिश करें। उन्हें बताएं कि बच्चों के हाथ में सिर्फ स्क्रीन नहीं, बल्कि पेंसिल और कागज़ भी होना चाहिए। यही आदत उनका भविष्य संवार सकती है।
Sources:
Mueller, P. A., & Oppenheimer, D. M. (2014). The pen is mightier than the keyboard: Advantages of longhand over laptop note taking. Psychological Science, 25(6), 1159–1168. https://doi.org/10.1177/0956797614524581
Tanaka, S., Ikeda, T., Kasahara, K., Kato, T., & Yamaguchi, M. K. (2013). Effects of handwriting practice on brain activity during working memory tasks in young children. Frontiers in Human Neuroscience, 7, 889. https://doi.org/10.3389/fnhum.2013.00889
Van der Meer, A. L. H., & Van der Weel, F. R. (2017). Only three fingers write, but the whole brain works: A high-density EEG study showing advantages of drawing over typing for learning. Frontiers in Psychology, 8, 706. https://doi.org/10.3389/fpsyg.2017.00706