दिव्या देशमुख ने एक नया इतिहास रचा है। 19 साल की इस खिलाड़ी ने FIDE महिला वर्ल्ड कप जीतकर भारत को गर्व महसूस कराया है। यह टूर्नामेंट जॉर्जिया के बटुमी में हुआ था। दिव्या ने फाइनल में भारत की ही एक और दिग्गज खिलाड़ी कोनेरु हम्पी को हराया। यह मैच रैपिड टाईब्रेक में तय हुआ, क्योंकि क्लासिकल मुकाबले ड्रॉ रहे। इस जीत के साथ ही दिव्या भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर भी बन गई हैं।
यह पहला मौका था जब महिला वर्ल्ड कप का फाइनल दो भारतीय खिलाड़ियों के बीच खेला गया। इससे यह साफ है कि भारत में महिला शतरंज अब दुनिया के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है। दिव्या ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया। हम्पी ने भी उनकी तारीफ की और कहा कि दिव्या पूरे टूर्नामेंट में बहुत अच्छा खेली हैं।
इस बड़ी जीत की गूंज बिहार तक सुनाई दी। क्वीन्स गैम्बिट चेस अकादमी के प्रमुख संजीत सौरव ने कहा कि यह जीत बहुत प्रेरणादायक है। इससे लड़कियों को आगे आने का हौसला मिलेगा, खासकर उन जिलों में जहां शतरंज अब धीरे-धीरे फैल रहा है।
चंपारण में बच्चों को चेस सिखा रहे शाहिद भी इस खबर से काफी खुश हैं। उन्होंने कहा कि दिव्या और हम्पी जैसे खिलाड़ियों को देखकर गांव के बच्चे भी अब सपने देखने लगे हैं। उन्होंने बताया कि वे लगातार स्कूलों और छोटे गांवों में जाकर बच्चों को चेस से जोड़ने का काम कर रहे हैं और अब यह सफर और मज़बूत होगा।
शतरंज को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को बेहतर ढांचे की जरूरत है। खासकर बिहार जैसे राज्यों में जहां प्रतिभा है लेकिन संसाधनों की कमी अब भी बड़ी चुनौती है। अच्छी बात यह है कि अब कई पुराने खिलाड़ी और समर्पित लोग इस दिशा में मेहनत कर रहे हैं। संजीत सौरव कहते हैं कि अगर सरकार और समाज थोड़ा साथ दे, तो बिहार से भी जल्द एक ग्रैंडमास्टर निकल सकता है। शाहिद का भी मानना है कि सही गाइडेंस और निरंतर अभ्यास से बिहार के बच्चे भी देश और दुनिया में नाम कमा सकते हैं।