बिहार बोझ नहीं, संभावनाओ का राज्य है

बिहार एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य है। यह वही धरती है जहाँ बुद्ध को ज्ञान मिला, जहाँ चाणक्य और चंद्रगुप्त जैसे महापुरुषों ने इतिहास रचा, और जहाँ स्वतंत्रता संग्राम में कई महान नेता उभरे। लेकिन आज यही बिहार देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता है। सवाल यह है — ऐसा क्यों?

बिहार की जनता मेहनती है, समझदार है और देश के हर कोने में अपनी मेहनत और प्रतिभा से पहचान बना रही है। चाहे वह दिल्ली के निर्माण स्थलों पर काम कर रहे मजदूर हों, मुंबई में टैक्सी चलाने वाले हों या बेंगलुरु के आईटी सेक्टर में काम कर रहे पेशेवर — बिहार के लोग हर जगह हैं और अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। तो फिर अपने ही राज्य में वे क्यों पिछड़े हुए हैं?

इसका मुख्य कारण है — इतिहास से चला आ रहा भेदभाव, कमजोर नेतृत्व, भ्रष्ट नौकरशाही और योजनाओं का कमजोर क्रियान्वयन।

आज़ादी के बाद से ही बिहार को विकास की मुख्यधारा से धीरे-धीरे बाहर कर दिया गया। केंद्र की नीतियाँ और संसाधनों का बंटवारा बिहार के साथ न्यायपूर्ण नहीं रहा। जब देश के दूसरे राज्यों में उद्योग, सड़कें, बिजली और स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर होती गईं, बिहार को लगातार नजरअंदाज़ किया गया। नतीजा यह हुआ कि आज भी बिहार के कई हिस्सों में बुनियादी ढाँचे की हालत चिंताजनक है।

राज्य स्तर पर भी नेतृत्व की कमी और राजनीति में जातिवाद ने बिहार की प्रगति को रोक दिया। नेताओं ने जनता की मूलभूत ज़रूरतों — जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और उद्योग — पर ध्यान देने के बजाय वोट-बैंक की राजनीति को प्राथमिकता दी। इससे सरकारी व्यवस्था भी लापरवाह और भ्रष्ट होती चली गई।

बिहार में कई बार निवेश लाने की कोशिशें हुईं, लेकिन खराब कानून-व्यवस्था, बिजली की कमी और लालफीताशाही के कारण बड़े उद्योगों ने राज्य से दूरी बनाए रखी। आज भी जब कोई कंपनी बिहार में निवेश की बात सोचती है, तो राज्य की “छवि” सबसे बड़ी रुकावट बन जाती है।

यह समझना ज़रूरी है कि बिहार का पिछड़ापन वहाँ की आम जनता की वजह से नहीं है। जनता मेहनती है, लेकिन उनके पास अवसर नहीं हैं। अगर एक बिहारी युवक पंजाब या दिल्ली जाकर मेहनत करके सफल हो सकता है, तो वही काम अपने गाँव में क्यों नहीं कर सकता? इसका जवाब है — खराब नीतियाँ, कमजोर अमल और ऐतिहासिक उपेक्षा।

अब समय आ गया है कि बिहार को बोझ नहीं, संभावना की तरह देखा जाए। वहाँ के युवाओं को शिक्षा, सम्मान और रोज़गार के बेहतर अवसर मिलने चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि नेतृत्व ज़िम्मेदार बने, योजनाएँ ज़मीन पर उतरें, और जनता अपनी आवाज़ बुलंद करे।

बिहार बदल सकता है — ज़रूरत है तो बस ईमानदार नेतृत्व, मजबूत इच्छाशक्ति और सही दिशा की। जनता तो पहले से तैयार है, अब व्यवस्था को भी जागना होगा।