ट्रंप टैरिफ: अमेरिका को नुकसान और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लागू किए गए टैरिफ (शुल्क) अमेरिका की मदद करने की बजाय उसे और अधिक नुकसान पहुँचा रहे हैं। उनकी सोच थी कि विदेशी सामानों पर ज़्यादा टैक्स लगाकर अमेरिकी उद्योगों को मज़बूती मिलेगी और लोगों को ज़्यादा नौकरियाँ मिलेंगी। लेकिन सच्चाई इसके उलट सामने आ रही है।

आज अमेरिका के शेयर बाजार भारी गिरावट देखी जा रही है। निवेशक डरे हुए हैं और भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं। यह स्थिति किसी भी मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं होती। साथ ही, जो संकेत किसी देश की आर्थिक सेहत को दिखाते हैं – जैसे रोज़गार की दर – वो भी गिरावट की ओर हैं। लोगों को नौकरियाँ मिलनी बंद हो गई हैं, और बेरोज़गारी बढ़ रही है।

ट्रंप का यह टैरिफ नीतियों वाला कदम सिर्फ अमेरिका को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को पीछे ले जा रहा है। जिस दौर में हम ग्लोबलाइज़ेशन यानी वैश्वीकरण के युग में जी रहे हैं, जहाँ देश एक-दूसरे से व्यापार, ज्ञान और तकनीक के माध्यम से जुड़े हुए हैं, वहाँ एकतरफा फैसले और संरक्षणवादी नीतियाँ सबको नुकसान पहुँचाती हैं।

चीन, यूरोप, और अन्य देशों ने भी ट्रंप के टैरिफ का जवाब अपने टैरिफ से दिया है। इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर असर पड़ा है और एक तरह की ‘व्यापार युद्ध’ की स्थिति बन गई है। नतीजा ये है कि अमेरिका के किसान, उद्योगपति और आम नागरिक खुद को नुकसान में पा रहे हैं। अमेरिका के निर्यात में गिरावट आई है, और वस्तुओं के दाम बढ़े हैं, जिससे आम जनता को महंगाई का सामना करना पड़ रहा है।

ट्रंप की सोच यह है कि वे अपनी ताकत से दुनिया को झुका सकते हैं। लेकिन दुनिया अब वह नहीं रही जहाँ एक देश के फैसले बाकी सबको चुपचाप मानने होते थे। आज की दुनिया आपस में जुड़ी हुई है और सहयोग से ही सबका भला हो सकता है।

इतिहास गवाह है कि जब-जब तानाशाही या सामंती सोच ने सिर उठाया, तब-तब जनता ने उसका विरोध किया। आज की दुनिया ने लोकतंत्र, समानता और खुलेपन को अपनाया है। ट्रंप जैसे नेता अगर अपने निजी स्वार्थ या राजनीति के लिए वैश्विक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाएँगे, तो उनका विरोध होना तय है।

अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश माना जाता है। इसलिए वहाँ के राष्ट्रपति की जिम्मेदारी और भी ज़्यादा होती है। उन्हें समझना चाहिए कि आज का समय दुनिया को जोड़ने का है, न कि दीवारें खड़ी करने का। अगर हम सब मिलकर आगे बढ़ें, तो सबका भला हो सकता है – और यही आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।