इंडियन एक्सप्रेस समेत कई मीडिया संस्थानों ने हाल ही में एक खबर रिपोर्ट की है, जिसमें बताया गया है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक भाई वीरेंद्र और एक पंचायत सचिव के बीच फोन पर तीखी बहस हुई। इस बातचीत की रिकॉर्डिंग सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है, जिसमें विधायक जी सचिव को “जूते से मारने” की धमकी देते सुने जा सकते हैं।
भाई वीरेंद्र, जो मनेर विधानसभा सीट से चार बार विधायक रह चुके हैं और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद व नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के करीबी माने जाते हैं, ने पंचायत सचिव मुकेश कुमार से एक व्यक्ति – अविनाश कुमार – के मृत्यु प्रमाण पत्र के बारे में फोन पर बात की थी। कॉल के दौरान जब सचिव ने उन्हें नाम से नहीं पहचाना, तो बात धीरे-धीरे बिगड़ने लगी।
बातचीत में दोनों के बीच सम्मान और व्यवहार को लेकर कहा-सुनी हो गई, जो आगे जाकर धमकी और गुस्से में बदल गई।
जब यह ऑडियो वायरल हुआ, तो विधायक ने फेसबुक पर सफाई दी। उन्होंने माना कि बातचीत में कड़े शब्दों का इस्तेमाल हुआ, लेकिन इसके लिए पंचायत सचिव के “बेसरकारी और असम्मानजनक” व्यवहार को जिम्मेदार ठहराया। विधायक का कहना था कि सचिव ने ठीक से नमस्ते तक नहीं कहा और मामले को गंभीरता से नहीं लिया, जिससे वह नाराज़ हो गए।
भाई वीरेंद्र ने यह भी आरोप लगाया कि सचिव ने बिना इजाज़त फोन कॉल को रिकॉर्ड कर सार्वजनिक किया, जो निजता और सरकारी नियमों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भरोसा भी दिलाया कि वह जनता की सेवा में हमेशा सक्रिय रहेंगे और अधिकारियों से काम की जवाबदेही भी माँगते रहेंगे।
बिहार की राजनीति में भाई वीरेंद्र एक बेबाक और विवादों में रहने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं। इस बार भी जब विधानसभा अध्यक्ष ने उनसे माफ़ी माँगने को कहा, तो उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया।
मनेर से 2010 से लगातार चार बार विधायक चुने गए भाई वीरेंद्र, राजद संगठन में वरिष्ठ प्रवक्ता हैं और पार्टी के भीतर और ज़मीनी स्तर पर उनका खासा असर है।
हाल ही में बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान भी उन्होंने कथित तौर पर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया था। मतदाता सूची को लेकर बहस के दौरान उन्होंने कहा था, “क्या विधानसभा किसी के बाप की है?” जिसके बाद उनकी काफी आलोचना हुई।
लेकिन इस पूरे मामले की सबसे ज़रूरी बात यह है कि दोनों पक्षों को – विधायक और पंचायत सचिव – एक-दूसरे से शालीन और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए था। दोनों ही जनता के सेवक हैं। एक लोकतांत्रिक और तरक्कीपसंद समाज में सभी लोगों को, चाहे वे किसी भी पद पर हों, इज़्ज़त और गरिमा के साथ जीने और काम करने का हक़ है। मतभेद हों तो बात की जाए, समाधान निकाला जाए, लेकिन भाषा और मर्यादा को छोड़ना किसी के लिए भी ठीक नहीं। यही लोकतंत्र की असली बुनियाद है।